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ब्रिटिश काल में संवैधानिक विकास |
ब्रिटिश काल में संवैधानिक विकास
ब्रिटिश काल में संवैधानिक विकास का आरंभ भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन(1600) के दौरान मानी जाती है। तथा ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना संवैधानिक विकास बक्सर के युद्ध के बाद आरंभ किया।
कंपनी के साथ में संवैधानिक विकास
रेगुलेटिंग एक्ट 1773
इसकी शुरुआत रेगुलेटिंग एक्ट 1773 से देखी जाती है । इस दौड़ में ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटिश संसद के नियंत्रण का प्रारंभ हुआ ।
- बंगाल के गवर्नर बंगाल के गवर्नरजनरल बना दिया गया और वारेन हेस्टिंग पहले गवर्नर जनरल बने।
- कुछ मामलों में बम्बई और मद्रास प्रेसिडेंट को बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया ।
- बंगाल में एक प्रशासक मंडळ कल का गठन किया गया एक गवर्नर जनरल एवं चार सदस्य शामिल किए गए।
- इन्हें कानून बनाने का अधिकार दिया गया ।
1774 में बंगाल में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन न्यायाधीश शामिल हैं ।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784
- इसके अंतर्गत पहली बार कंपनी के अधीन प्रदेश को ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेश कहाँ गया । ब्रिटेन में छह सदस्य नियंत्रण बोर्ड यानी बोर्ड ऑफ कंट्रोल का गठन किया गया ।
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल को सिविल, सैन्य , राजा संबंधी मामले सौंपे गये।
- वहीं कोर्ट ऑफ डायरेक्ट वाणिज्यिक गतिविधियों देखना था । भारत में प्रशासन गवर्नर जनरल और उनकी तीन सदस्यों वाली परिषद के द्वारा देखा जाता था। और इसमें एक स्थान मुख्य सेनापति को दिया गया।
चार्टर एक्ट 1813
- कम्पनी के भारत के साथ व्यापार के एकाधिकार को छीन लिया गया जिसमें चाय का व्यापार यथावत बना रहा ।
- कंपनी का चीन के साथ व्यापार का एकाधिकार भी बना रहा।
- भारत में अंग्रेजीराज की संवैधानिक स्थिती तो पहली बार स्पष्ट किया गया।
- ईसाई मिशनरियों द्वारा भारत में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार को अनुमति दी गई।
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ब्रिटिश काल में संवैधानिक विकास |
चार्टर एक्ट 1833
- इस एक्ट के तहत भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जाने लगा।
- बंगाल के गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया और लार्ड बेंटिन पहले गवर्नर जनरल बने ।
- गवर्नर जनरल की परिषद् में चौथे सदस्य यानी अस्थाई सदस्य के रूप में विधि विशेषज्ञ को नियुक्त किया गया ।
- और लार्ड मैकॉले पहले विधि विशेषज्ञ बनें।
- भारतीय कानून को संहिताबद्ध तथा सुधारने की भावना से विधि आयोग का गठन किया गया।
- चाय और चीन के साथ व्यापार का एकाधिकार भी समाप्त कर दिया गया ।
- कंपनी के अधीन किसी पद पर नियुक्ति में भारतीयों को समानता का व्यवहार किया जाना तय किया गया।
चार्टर एक्ट 1853
- चार्टर एक्ट 1853 निम्न बातों को शामिल किया गया, इसके अनुसार ब्रिटिश संसद कभी भी कम्पनी से भारत का शासन ले सकती है।
- नियुक्तियों के मामले में डायरेक्ट इसका संरक्षण समाप्त कर दिया गया।
- विधि सदस्यों को कार्यकारी परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया।
- सिविल सेवा परीक्षा आधारित बनाया गया ।
- गवर्नर जनरल की परिषद में कानून निर्माण में सहायता के लिए 6 नए सदस्यों की नियुक्ति की गयी।
और कार्यकारीपरिषद् को विधान परिषद के विधेयक को वीटो का अधिकार दिया गया।
भारत शासन अधिनियम 1858
- इसके अंतर्गत भारत का शासन ब्रिटिश ताज के हाथों में चला गया।
- गवर्नरजनरल को वायसराय बना दिया गया ।
- और पहले वायसराय लॉर्ड कैनिंग बने।
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल और बोर्ड ऑफ डायरेक्ट उसकी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया ।
भारत के प्रतिनिधि सरकार का विकास
- इसमें कार्यकारी परिषद् में पांचवें सदस्य को बढ़ा गया ।
- पोर्टफोलियों सिस्टम की शुरुआत की गयी जो कैबिनेट सिस्टम का आधार बनी ।
- विधान परिषद की स्थापना की गई और केंद्र में विधि निर्माण के लिए कार्यकारी परिषद् का विस्तार किया गया।
- कार्यकारी परिषद ने गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति की गयी और छह से बारह अतिरिक्त सदस्य नामित किए गए ।
बम्बई और मद्रास कों उनकी विधि की शक्तियां वापस दी गयी ।
गवर्नर जनरल को संकटकालीन स्थिती विधान परिषद की अनुमति के बिना अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गयी।
भारतीय परिषद् अधिनियम 1892
- इसके तहत सेंट्रल काउंसिल में अधिकतम 22 सदस्य रखे गए जिनमें 10-16 अतिरिक्त सदस्य थे ।
- कार्यकारी परिषद के सदस्यों की संख्या 6 रखी गई ।
- केंद्र और प्रांतों में परिषद के आकार और कार्यक्षेत्र में वृद्धि की गयी।
- पहली बार चुनाव का प्रयोग किया गया हालांकि इसमें चुनाव शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया।
इसके तहत बजट पर विचार प्रकट करने का अधिकार दिया गया साथ ही प्रश्न पूछने का अधिकार भी दिया गया है।
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भारतीय परिषद अधिनियम 1909 ( मार्ले मिंटो सुधार )
- भारतीय परिषद अधिनियम 1909 ( मार्ले मिंटो सुधार ) तहत कार्यकारी परिषद में एक भारतीय सदस्य को रखने की व्यवस्था की गयी और पहले भारतीय सदस्य सत्येन्द्रसिंह थे ।
- इसमें अप्रत्यक्ष चुनाव का प्रयोग किया गया।
- मुसलमानो के लिए पृथक सांप्रदायिक मताधिकार की व्यवस्था की गयी।
- पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया ।
- बजट पर बहस का अधिकार भी दिया गया ।
साथ ही प्रस्ताव पारित करने का अधिकार भी दिया गया।
उत्तरदायी सरकार का विकास
भारत सरकार अधिनियम 1909 ( मॉन्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार )
इसके तहत निम्न बातें शामिल की गई -
- केंद्र के कार्यकारी परिषद आठ में तीन सदस्य भारतीय होंगे ।
- प्रांतों में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी जिसे आरक्षित और हस्तांतरित विषयों में बांटा गया ।
- प्रान्त के ऊपर केन्द्रीय नियन्त्रण में कुछ ढीला दिया गया ।
- केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्थापिका की स्थापना की गयी ।
- सिखों आंग्ल भारतीयों, ईसाईयों एवं यूरोपीयों को भी पृथक नेतृत्व प्रदान किया गया ।
- प्रान्त में पहली बार उत्तरदायी सरकार का गठन किया गया ।
और पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव हुआ इसमें महिलाओं को वोट देने का अधिकार भी दिया गया अगला ।
भारत सरकार अधिनियम 1935
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत संघात्मक सरकार बनाने का प्रयास किया गया।
- प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन समाप्त किया गया और स्वायत्त सरकार की व्यवस्था की गयी।
- केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की व्यवस्था भी की गयी।
- इसमे बर्मा यानी म्यांमार को भारत से पृथक कर दिया गया।
- भारत के संविधान में केंद्र और राज्य के बीच शक्तियां के विभाजन की अवधारणा प्रस्तुत की गयी।
- इसमें संघ सूची में 59 विषय, राज्य सूची में 54 विषय और समवर्ती सूची में 36 विषय रखे गये।
इसके तहत अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल को दी गयी।
इसमें संघीय न्यायालय की स्थापना का प्रावधान भी किया गया।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947
- इसके तहत भारतीयों और पाकिस्तानी प्रतिनिधियों को अपने संविधान बनाने की अनुमति दी गयी ।
- 15 अगस्त 1947 को प्रादेशिक शासन इकाईया भारत और पाकिस्तान की स्थापना की गयी।
- इसके तहत ब्रिटिश सम्राट का भारतीय रियासतों पर प्रभुत्व समाप्त किया गया।
भारत राज्य सचिव का पद भी समाप्त किया गया और इसका कार्य राष्ट्र मंडली मामलों की सचिव को देदिया गया।
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